ईद मुबारक

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बगिया को सजाए आर्किड

जलवायु
भारत में इन फूलों की तैयारी का समय नवम्बर से अप्रैल के बीच होता है भारत में भौगोलिक स्थिति एवं उपयुक्त जलवायु का लाभ लेते हुए इन फूलों को कम कीमत में उस समय उत्पादित कर सकता है, जब विश्व के बाजारों में इनकी कमी महसूस की जाती है. 

भूमि
आर्किड को विभिन्न प्रकार की भूमियों में उगाया जाता है, उचित जल निकास वाली रेतीली दोमट भूमि इसके लिए सर्वोत्तम मानी गयी है.

प्रजातियाँ
व्यावसायिक किस्में:- सिम्बीडियम आर्किड की लगभग 10000 किस्में हैं, जिन्हें अर्न्तजातीय एवं अंत संकरणों द्वारा विकसित किया गया है से किस्में आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान और अमेरिका आदि देशों में विकसित की गयी है
कर्तित फूलों के लिए उगाई जाने वाली प्रमुख किस्में निम्न प्रकार है-
शीघ्र तैयार होने वाली- बाल्टिक एप्पल, अल्टीमेटम, आरकेडियन सनराइज, गोल्डेन फ्लीस, बाल्टिक स्नो माली, ब्यूटी फ्रेड-60
मध्य में तैयार होने वाली- वैली जेम मेफेयर, ग्रीन बरो कान्फेरेन्स, एलिस एन्डरसन फोर्टीनाइनर, जिमा कुक्स ब्रिज, विरजिन
देरी से तैयार होने वाली- लेविस ड्यूक बेल्लाविस्टा, नरेल्ला जेनीफर गेल, इलियट रोगर्स सी २९०, जंग फ्राउ डास प्यूबलास, वाल्या क्राइग सदरलैंड, पोइटिक मनूबा 

बीज-बुवाई / पौधरोपण
सिम्बीडियम आर्किड के छोटे पौधे (5 सेमी. लम्बाई) 5 सेमी. व्यास वाले पाली बैग में रोपे जा सकते है सबसे पहले पाली बैग में ईटों के टूटे हुए टुकङों की ५ सेमी० की तह बिछा दें तत्पश्चात पौधे को मृदा मिश्रण के साथ लगा दें मृदा मिश्रण को समान भाग में पत्तियों की खाद, कोकोपीट, सङे हुए गोबर की खाद और परलाइट को मिलाकर बनाया जा सकता है इन पौधों को प्रति वर्ष बङे व्यास वाले पालीबैग में स्थानान्तरित किया जाता है तीसरे वर्ष जब इनकी लम्बाई लगभग 30 सेमी. की हो जाए तब इन्हें 15 सेमी० व्यास वाले प्लास्टिक या मिट्टी के गमले में स्थानान्तरित कर दें चौथे वर्ष इन्हें 20 सेमी. वाले गमले में प्रतिरोपित करें इस वर्ष इसमें फूल आने की सम्भावना रहती है, अगले वर्ष इसमें भरपूर फूल आते हैं.

पौधे का आकार गमले की क्षमता से अधिक हो जाने पर इनकों विभाजित कर देना चाहिए. विभाजन कार्य फूलों के समाप्त होने के तुरन्त बाद किया जाना चाहिए. देरी से विभाजित एवं रोपित पौधों में फूलों की पैदावार पर बुरा प्रभाव पङता है. सबसे पहले पौधों को गमले से निकालकर उनके विभाजित हेने वाले स्थान से फाङकर अलग कर देना चाहिए. यदि आवश्यक हो तो काटने वाले औजार जैसे चाकू, शियर आदि का प्रयोग करें प्रत्येक पौधे को काटने के बाद औजारों को जीवाणु रहित कर लेना चाहिए, जिससे इनके द्वारा फैलने वाली बीमारियों का खतरा कम हो जाता है. ध्यान रहे कि विभाजित पौधों में 3 से 5 हरे बल्ब तथा एक बैकबल्ब रहे विभाजित पौधों को रोपण में बतायी गयी विधि द्वारा रोपित करें. 

खाद एवं उर्वरक
सिम्बीडियम आर्किड को द्रवित खाद देने से अच्छे परिणाम मिलते है, क्योकि मृदा मिश्रण में पोषक तत्वों की मात्रा कम होती है पौधों के वृद्धिकाल (फरवरी से अगस्त) में अधिक नाइट्रोजन वाले उर्वरक (30 ना.: 10 फा.: 10 पो.) तथा पुष्पनकाल एवं शीतऋतु में अधिक फास्फोरस युक्त उर्वरक (10 ना.:30फा.:२०पो.) का प्रयोग करना चाहिए उर्वरक को 1 ग्राम प्रति ली० पानी में घोल कर वृद्धिकाल में सप्ताह में एक बार तथा शीत ऋतु एवं पुष्पन काल में माह में एक बार देना चाहिए 

सिंचाई
सिचाई की मात्रा एवं इनकी संख्या मृदा मिश्रण एवं स्थान विशेष की जलवायु पर निर्भर करती है मृदा मिश्रण में सदैव पर्याप्त मात्रा में नमी बनी रहनी चाहिए मृदा मिश्रण जब ऊपर से 2.5 से 5.0 सेमी. तक सूख जाय तो तुरन्त सिंचाई करें गर्म एवं शुष्क मौसम में फव्वारे से पानी देने से पौधों के आसपास नमी बनी रहती है, जिससे रेड स्पाइडर माइट का प्रकोप कम होता है सिंचाई जल में घुलित लवणों की मात्रा 25-50 पी.पी.एम. के बीच होनी चाहिए इनकी मात्रा किसी भी परिस्थिति में 100 पी.पी.एम. से अधिक नहीं होनी चाहिए 

खरपतवार नियन्त्रण
फसल की प्रारम्भिक अवस्था में खरपतवार अधिक क्षति पहुँचाते हैं अत: आवश्यकतानुसार निराई-गुङाई करते रहना चाहिए

कीट-नियंत्रण
रेड स्पाइडर माइट- यह नई और कोमल पत्तियों की निचली सतह से रस चूस कर उनको धब्बा युक्त बना देते हैं इनके भीषण प्रकोप से पत्तियां सिल्वरी सफेद हो जाती हैं. इनकी रोकथाम के लिए केल्थेन 85 ई.सी. 6 मिली० मैलाथियान 50 ई.सी. 10 मिली. या नीम का तेल 15 मिली. प्रति 10 ली. पानी के साथ मिलाकर 15 दिन के अंतर पर छिङकाव करें गर्म एवं शुष्क मौसम में पौधों के आसपास नमी बनाए रखने से इनका प्रभाव कम होता है.
स्केल्स- यह पौधों के पत्तियों की निचली सतह पर चिपक जाते है और उनसे रस चूसते रहते है. इनको निकालने के लिए रुई को 70 प्रतिशत आइसोप्रोपाइल एल्कोहल या मिथाइलेटेड स्पिरिट में भिगोकर धीरे-धीरे साफ किया जाना चाहिए. मैलाथियान 30 ई.सी. 16 मिली. या मोनोक्रोटोफास 40 ई.सी. 12 मिली. प्रति ली. पानी के साथ मिलाकर छिङकाव करना लाभकारी होता है.
एफिड्स- यह भूरे एवं हरे रंग लिए हुए होते है, जो कोमल कणिशों, कलियों और फूलों पर जमा होकर उनसे रस चूसते हैं. प्रभावित पुष्प खुलनें से पहले मुरझाकर गिर जाते हैं.इसकी रोकथाम के लिए डायमिथोएट 30 ई.सी. 16 मिली. या मैलाथियान 30 ई.सी. 10 मिली. प्रति 10 ली. पानी के साथ मिलाकर 10 से 15 दिन के अंतर पर छिङकाव करना चाहिए.
घोंघे- यह रात्रिचर दिन के समय मृदा मिश्रण या पौधों के आस-पास छिपे रहते है और रात मे निकलकर फूलों की पंखुङियों को काट देते है इनसे बचाव के लिए स्नेल किल (3 प्रतिशत मेटलडिहाइड गोलिया) बिछा दें या जमीन पर 1 प्रतिशत मेटलडिहाइड का 20 दिन के अंतराल पर छिङकाव करना चाहिए. 

रोग-नियंत्रण
टिप बर्न- सिंचाई जल से घुलित लवणों की अधिक मात्रा होने से पत्तियों का आखिरी सिरा हल्का भूरा होकर सूख जाता है. सिम्बीडियम डेवोनियानम बैक ग्राउन्ड वाली किस्में इससे ज्यादा प्रभावित होती है इससे बचाव के लिए अच्छी किस्म का सिंचाई जल प्रयोग करें.
ब्लैक राट- यह एक कवक जनित रोग है इससे प्रभावित पौधों की पत्तियों, बल्बों और जङों पर हल्के भूरे से काले रंग के धब्बे पङ जाते है ,जो धीरे-धीरे ऊपर की ओर बढते है और पत्तियाँ गिर जाती है. इससे प्रभावित पौधों को मेटलैक्सिल के घोल (1 ग्राम प्रति ली.) में आधा घंटा उपचारित कर उन्हें जर्म रहित मृदा मिश्रण में लगाना चाहिए.
बैक्टीरियल साफ्ट राट- यह बैक्टीरिया द्वारा फैलने वाला रोग है. इससे प्रभावित पौधों की पत्तियाँ एवं बल्ब पर धूसर हरे रंग के धब्बे पङ जाते है जो धीरे-धीरे प्रभावित भागों को सङा देते है. सङे हुए भाग से सङी हुई मछली जैसी दुर्गन्ध आती है. इससे प्रभावित पौधों को स्ट्रेप्टोमाइसिन या टेट्रासाइक्लिन के घोल से उपचारित करें.
विषाणु रोग- यह बीमारी सिम्बीडियम मोजैक नामक विषाणु से फैलती है. इससे प्रभावित पौधों की नई पत्तियों में मोजैक की तरह हल्के पीले रंग के धब्बे पङ जाते है जो 18-25 दिन बाद सूखकर काले पङ जाते है इससे बचाव के लिए रोगग्रस्त पौधों को अलग रखना चाहिए तथा विषाणुओं को फैलने से रोकने के लिए हमेशा जर्मरहित किए हुए काटने वाले औजारों का प्रयोग करना चाहिए. 

कटाई
सिम्बीडियम आर्किड के फूलों को ज्यादा दिनों तक रखने के लिए कणिशों की कटाई इन पर लगे सारे पुष्पकों के फूलने के 3-4 दिन बाद करे इससे जल्दी या देरी से काटे गये फूलों की आयु कम हो जाती है कणिशों को तेज धार वाले चाकू या सिकेटियर से काटकर उन्हें 8-10 सेमी. पानी में डुबोते हुए बाल्टी में रखते है. कणिशों को सावधानी पूर्वक रखें, ताकि इन पर लगे पुष्पकों को किसी भी प्रकार की कोई क्षति न पहुँचे. 

अन्य
पैकेजिंग- फूलों को काटने के तुरन्त बाद इन्हें पैकेजिंग शेड में ले जाया जाता है जहां पर इनमें से विकृत, क्षतिग्रस्त, बीमार एवं पोलन कैप रहित पुष्पकों वाली कणिशों को अलग कर दिया जाता है फिर इन्हें साफ पानी से धोकर छाया में सुखाते हैं कणिशों की ग्रेडिंग इनकी लम्बाई एवं उन पर लगे पुष्पकों के आधार पर की जाती है प्रत्येक कणिश को फ्लावर, ट्यूब जिसमें रक्षक घोल या पानी रहता है के साथ लगा दिया जाता है फिर इन्हें पाली प्रोपाइलिन की स्लीव के अंदर डालकर पेपर बोर्ड या कोरुगेटेड फाइबर बोर्ड बाक्सेज में 6-10 कणिश प्रति बाक्स के हिसाब से पैक कर दिया जाता है.

कणिश प्रबन्धन- कणिशों के निकलने के तुरन्त बाद उन्हें सहारे के माध्यम से सीधा रखा जाना चाहिए. जब कणिशे बङी होने लगे और उन पर कलिकाएं दिखाई देने लगे तब पौधे एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरित न करें. ऐसा करने से कणिशों की आकृति विकृत हो सकती है. यदि इन्हें स्थानान्तरित करना आवश्यक हो तो इन्हें ऐसी जगह पर रखे, जहां पर इन्हें उतना ही प्रकाश मिले जितना कि मिल रहा था कणिशों को बांस की डण्डी या धागे से बांधकर सीधा रखा जा सकता है. कणिशों को सहारा देने का काम हमेशा दोपहर बाद किया जाना चाहिए, क्योकि इस समय कणिशों में पानी की मात्रा कम होती है, जिससे यह मुलायम होती है और इनके टूटने का खतरा कम रहता है इन फूलों के रंग का पौधे को मिलने वाले प्रकाश के साथ गहरा संबंध होता है जैसे लाल, गहरे गुलाबी, चमकीले पीले रंग लिए हुए किस्मों को ज्यादा प्रकाश की आवश्यकता होती है जबकि हरे और सफेद रंग वाली किस्में कम रोशनी में अच्छी खिलती हैं.
*साभार

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